Kattha Ke Fayde aur Nuksaan, Laabh, Hani | TalkInHindi

MehakAggarwal | July 7, 2021 | 1 | Article

कत्था एक जड़ी बूटी है। औषधि बनाने के लिए कत्था की पत्तियों, अंकुरों और लकड़ी का उपयोग किया जाता है। दो प्रकार के कत्था पाए जाते है – काला कत्था और पीला कत्था, दोनों में थोड़े अलग रसायन होते हैं, लेकिन इनका उपयोग एक ही उद्देश्य और एक ही खुराक के लिए किया जाता है। ज्यादात्तर लोगों को यही पता है कि कत्था का इस्तेमाल केवल पान में ही होता है। लेकिन कत्था के कई फायदे (Kattha Ke Fayde) है जो कि बहुत कम लोगों को ही पता है। कत्था का उपयोग और फायदे व नुक्सान जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़िए. इस लेख में आप यह भी पढेंगे कि कत्था क्या है और इसका प्रयोग किस प्रकार से किया जाता है?

यह तो सभी जानते है की पान में कत्था का उपयोग किया जाता है. पान खाना भारत देश में एक आम शौक है. कई स्थानों पर तो जब तक पान न खा ले तब तक खाने को सम्पूर्ण नहीं माना जाता. पान कत्था के बिना अधुरा होता है. पान लगते समय सबसे पहले कत्था व चूना ही लगाया जाता है. कत्थे के कई लाभकारी गुण  फायदे (Kattha Ke Fayde) है। आज के इस लेख में हम कत्थे से जुड़ी बहुत सी जानकारियों को विस्तार से जानने वाले है, तो चलिए शुरू करते है।

Table of Contents

कत्था क्या है (What is Kattha?)

Kattha एक आयुर्वेदिक औषधि यानि जड़ी बूटी है। कत्था को खैर (Khair) या खदिर के नाम से भी जाना जाता है। अनेको लाभकारी गुण होने के कारण इसका इस्तेमाल बहुत ही बड़े स्तर पर होता है। खैर के पेड़ की लकड़ी से कत्था को निकाला जाता है।

कत्था का प्रकार (Types of Kattha)

यह दो प्रकार का होता है। लाल कत्था तथा सफेद कत्था। लाल कत्था का उपयोग पान में होता है। जबकि सफेद कत्था का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।

कत्था के पेड़ की पहचान व स्वरूप (Identification and Description of Kattha)

खैर या कत्था एक मध्यम कद का कांटेदार (कांटेदार) पेड़ है। यह बबूल की एक पेड़ प्रजाति है। इसकी टहनियाँ पतली होती हैं, जिन पर जोड़े में कांटे लगे होते हैं।
इसके पत्ते संयुक्त और 30-40 के जोड़े में होते हैं। कत्था के फूल सफेद (सफेद) या हल्के पीले रंग के होते हैं। खैर की छाल आधी से डेढ़ इंच मोटी होती है, जो बाहर से गहरे भूरे रंग की होती है। जबकि अंदर यह भूरे रंग का होता है।

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कत्था का प्रयोज्य अंग (Usable part of Kattha)

खैर का मुख्यतः खदिर सार तथा त्वक इस्तेमाल किया जाता है।

कत्था का स्वाद (Taste of Kattha)

आयुर्वेद के अनुसार खैर या कत्था की तासीर ठंडी होती है. इसका स्वाद कड़वा, तीखा और कसैला होता है।

कत्था के अन्य नाम (Name of Kattha)

  • Famous Name : कत्था (Kattha)
  • Botanical Name: Syn: Acacia Chundra (Roxb) Willd. Acacia Catechu Willd Mimosaceae (Leguminosae)
  • Hindi Name: कत्था (Kattha), दन्त धावन (Dant-Dhavan), गायत्रिन् (Gayatrin), खैर (Khair), खयर (Khayar), मदन (Madan), पथिद्रुम (Pathi-Drum), पयोर (Payor), प्रियसख (Priya-Sakh)
  • Sanskrit Name: गायत्रिन् (Gayatrin), खदिर या खादिर (Khadira), पथिद्रुम (Pathi-Drum), पयोर (Payor), प्रियसख (Priya-Sakh)
  • English Name: Black Catechu, Black Cutch, Cashoo, Catechu, Cutch Tree, Wadalee Gum
  • Assamese Name: Kher
  • Bengali Name: Khayer
  • Gujarati Name: Kher
  • Kannada Name: Kaachu, Kadira, Kadu, Kaggali
  • Konkani Name: खैर Khair
  • Malayalam Name: Karintaali
  • Marathi Name: खैर Khair, खयर Khayar, यज्ञवृक्ष Yajnavrksa
  • Nepalese Name: खयर् Khayar
  • Pali Name: खदिरो Khadiro
  • Prakrit Name: खइरं या खाइरं Khaiiram
  • Tamil Name: Cenkarungali, Kacu-K-Katti, Karai
  • Telugu Name: Khadiramu. Kaviricandra, Nallacandra
  • Urdu Name: Khair

कत्था को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?

कत्था को English में Catechu कहा जाता है. इसे kattha or cottah भी कहा जाता है. और हिंदी में कत्था, मराठी में खैर, असमिया और बंगाली में खोयर और मलय में कचू (इसलिए लैटिनकृत बबूल केचु को चुना जाता है) प्रकार-प्रजाति बबूल के पौधे का लिनिअन टैक्सोनॉमी नाम जो अर्क प्रदान करता है)।

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कत्था का गुण, दोष और प्रभाव (Properties, defects and effects of Kattha)

इसमें सूजनरोधी (Anti-Inflammatory) गुण होता है, जो सूजन को कम करता है। कत्थे में Wound Healing गुण होता है। यह घाव को भरने का काम करता है। इसमें Astringent गुण पाए जाते है जो रक्त स्राव को रोकता है।

Astringent एक तरल प्रदार्थ होता है जिसको त्वचा पर लगाने से त्वचा में Oil कम होता है। कत्था में Cooling Properties होती है। इससे शरीर को ठंडक मिलता है। कत्थे में Digestive गुण होता है। इससे पाचन ठीक होता है। Kattha रक्त शोधक (Bloodpurifier) का काम करता है।

कत्था का रासयनिक संगठन (Kattha Chemical Constituents)

इसके अंदर की लकड़ी में कैटेचिन (Catechin) एवं कैटेचुटैनिक अम्ल (Catechutannicacid) होता है। इस कैटेचुटैनिक अम्ल में 50 % टैनिन (Tannin) पदार्थ पाया जाता है।

कत्था कैसे बनाया जाता है?

कत्था खैर की लकड़ी में पाया जाने वाला एक सफेद पदार्थ है। यह विशेष रूप से डिजाइन किए गए मिट्टी के घड़े में 3 घंटे तक उबालकर पकाया जाता है. गाढ़ा और ठंडा होने पर इसे कपड़े से छानकर क्रिस्टलाइजेशन के लिए २ दिन रखा जाता है. 2 दिन छाँव में रखने पर इसका पूर्ण रूप से सुख जाता है और इसका क्रिस्टलाइजेशन हो जाता है। कत्था न केवल शरीर के दर्द के लिए बल्कि अन्य मानव रोगों की दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है।

तब इसे चौकोर टुकड़ों में काट लिया जाता है। जिसे कत्था कहते है। जब दुबारा कुछ देर तक ऐसे इसे गर्म किया जाता है तो यह चिपचिपा हो जाता है। दुबारा सूखने पर इसे कच्छ कहा जाता है।

एक अनुमान के अनुसार 100 किलोग्राम कटी हुए लकड़ी से लगभग 14 किलोग्राम कच्छ और 5 किलोग्राम कत्था (Kattha) प्राप्त होता है।

कत्था के फायदे व उपचार (Kattha ke fayde aur Upchar)

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कत्था का उपयोग दस्त, नाक और गले की सूजन, पेचिश, बृहदान्त्र की सूजन (कोलाइटिस), रक्तस्राव, अपच, पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस और कैंसर के लिए किया जाता है।

लोग त्वचा रोगों, बवासीर और दर्दनाक चोटों के लिए सीधे त्वचा पर कत्था लगाते हैं; रक्तस्राव को रोकने के लिए और घाव भरने के लिए भी कत्था का उपयोग किया जाता है।

खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में, कत्था का उपयोग स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है।

चर्मरोग में (Charm Rog me Kattha Ke Fayde)

कत्थे का पंचांग का क्वाथ बनाकर प्रतिदिन सुबह-साम दो दो चम्मच सेवन करने से चर्मरोग में काफी लाभ होता है। इसके पंचांग को जल में उबाल कर स्नान करने से भी काफी फायदा होता है।

जोड़ो के दर्द में लाभदायक

पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस बैकल स्कलकैप फ्लेवोनोइड अर्क के संयोजन में 500 मिलीग्राम एक विशिष्ट कैटेचू अर्क को फ्लेवोकोक्सिड (लिम्ब्रेल, प्राइमस फार्मास्यूटिकल्स) के रूप में जाना जाता है, दो बार दैनिक रूप से घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों को कम करता है।

मलेरिया बुखार में (Maleriya bukhaar me kattha ka upyog)

अगर किसी को मलेरिया बुखार हो जाये तो कत्था उसके लिए एक बेहतर औषधि है। कत्था की गोली को दिन में दो बार चूसने से मलेरिया में कभी लाभ होता है।

स्वर भेद (कण्ठदोष) में

तिल के तेल में कत्था मिलाकर इसमें कपड़े का छोटा सा टुकड़ा भिगो दे। और उस कपड़े को मुँह में रखें ऐसा करने से गला खुल जाता है।

दस्त में (Diarrhea me Kattha ka upyog)

बार बार दस्त की समस्या होने पर या पेट की खराबी होने पर कत्थे का इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद होता है। कत्थे को पानी में उबालकर लेने या पकाकर लेने से दस्त में लाभ मिलती है। कत्था पाचन से संबंधी समस्याओं में भी कत्था काफी फायदेमंद होता है।

व्रण में

कत्थे को जल में उबाल कर, जल से व्रण को साफ करने से काफी लाभ होता है। साथ ही इस जल में 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिलाकर प्रातः सायं पिने से भी काफी फायदा होता है।

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दांत संबंधी समस्या में (Dental disease me Kattha ka upyog)

किसी भी प्रकार की दांत से संबंधी समस्या में कत्थे के चूर्ण को सरसों के तेल के साथ मिलाकर मंजन करने से बहुत लाभ होता है।

श्वित्र रोग में

इसमें बराबर मात्रा में खैर की छाल और आँवला को मिलाकर अच्छी तरह से उबाल ले। फिर प्रातः एवं सायंकाल एक एक चम्मच आँवला का चूर्ण मिलाकर सेवन करे। श्वित्र रोग में काफी लाभ होता है।

गले की खराश में (Sore throat me Kattha ka upyog)

किसी को गले में खराश हो जाये तो कत्थे का चूर्ण मुख में रखकर चूसने से गले का खराश ठीक हो जाता है। साथ ही गला बैठना और मुँह के छाले होने की समस्या भी खत्म हो जाती है।

रक्त पित्त में (Blood bile me Kattha ke fayde)

अगर किस के मुख से, नासिका, गुदा, या मूत्र मार्ग द्वारा रक्त स्राव होता है। तो एक चम्मच खैर के पुष्प के चूर्ण में एक चम्मच मधु मिलाकर। प्रातः सायं सेवन करने से काफी फायदा होता है।

बवासीर में (Piles me Kattha ka upyog)

इसमें सफेद कत्थे को बड़ी सुपारी और नीला थोथा के साथ भून ले। फिर तांबे के बर्तन में मक्खन के साथ मिला कर संबंधित स्थान पर लगाने से बवासीर में बहुत फायदामिलता है।

अतिसार में (Atisar me Kattha ka upyog)

250 ml छाछ में 5 ग्राम कत्था का चूर्ण मिलाकर पिने से अतिसार में बहुत लाभ होता है।

प्रदर रोग में (Leucorrhoea me Kattha ka upyog)

कत्था प्रदर रोग में भी काफी फायदेमंद होता है। कत्थे और बांस के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर कल्क बना लें। फिर इसमें कल्क केग्राम हिसाब से शहद की मात्रा लेकर पेस्ट बनाकर खाएं। इससे प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

भगंदर में (Fistula me Kattha ka upyog)

खदिर की छाल तथा त्रिफला का काढ़ा बनाकर, इसमें भैंस का घी और विडंग का चूर्ण मिलाकर पिने से भगंदर में काफी लाभ मिलता है।

कान की समस्या (Ear problem me Kattha ka use)

अगर कान में दर्द हो या कान बहने की समस्या हो। कत्थे को पीसकर गुनगुने पानी में मिलाकर कान में डालने से काफी फायदा होता है।

मसूड़ों का रक्तस्राव में (Bleeding gums me

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Kattha ke fayde)

मसूड़े की बीमारी (मसूड़े की सूजन), मुंह के अंदर दर्द और सूजन (स्टामाटाइटिस), गले में खराश और मुंह के छालों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले माउथवॉश और गरारे में कत्था शामिल है। कत्थे का कुल्ला करने से मसूड़ों के रक्तस्राव में काफी लाभ होता है। मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है।

दमा रोग में (Asthma me Kattha ka upyog)

कत्था सांस संबंधी समस्याओं के लिए बहुत अच्छी औषधि है। कत्थे को हल्दी और शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार एक एक चम्मच लेने से दमा और सांस संबंधी समस्याओंकाफी लाभ होता है।

रक्तस्राव में (Bleeding me Kattha ka upyog)

चोट लगने पर रक्तस्राव में या कोई घाव हो जाए, तो उसमें कत्थे का पाउडर डालने से रक्त का स्राव बंद जाता है। और घाव भी जल्दी भर जाता है।

वातरक्त में (Anemia me Kattha ka use)

समभाग में खदिर के मूल का चूर्ण और आँवलें के रस में, घी और मधु मिलाकर प्रातः सायं पिने से वातरक्त में काफी लाभ होता है।

खाँसी में (Cough me Kattha ka upyog)

लगातार खांसी आने पर,बराबर मात्रा में कत्था, हल्दी और मिश्री को आपस में मिलाकर गोलियां बना ले। दिन में दो से तीन बार इन गोलियों को चूसने से खांसी दूर हो जाती है।

सूखी खाँसी में (Dry cough me Kattha ka upyog)

एक कप दही के पानी में दो ग्राम खदिर सार डालकर सुबह और साम पिने से सूखी खाँसी में काफी लाभ होता है। खदिर के अंदर की छाल का चार भाग, बहेड़ा की छाल दो भाग, लौंग एक भाग, इन सबका चूर्ण बना ले। फिर दिन में तीन बार एक एक ग्राम मधु के साथ चाटने से सूखी खाँसी में बहुत आराम मिलता है।

कत्था के सेवन का तरीका (How to Use Kattha?)

इसका इस्तेमाल सिमित मात्रा में करना चाहिए। क्योकि जायदा मात्रा में सेवन नुकसान दायक होता है। अत्यधिक मात्रा में सेवन आपको नपुंसक तक बना सकती है।

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कत्था के सेवन की मात्रा (How Much to Consume Kattha?)

अगर आप त्वक का चूर्ण इस्तेमाल कर रहे है तो 1-3 ग्राम तक करना चाहिए। खैर का क्वाथ इस्तेमाल कर रहे है तो 50ml -100ml तक करना चाहिए। वही खदिरसार का इस्तेमाल कर रहे है तो 1/2 से 1 ग्राम तक कर सकते है।

कत्था कहा पाया जाता है (Where is Kattha Found)

इसका पेड़ समस्त भारत में से पाया जाता है। खासकर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के खैर शहर मे ये अधिक मात्रा मे पाया जाता है। इसके आलावा यह चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्री लंका, भूटान, म्यांमार में भी पाया जाता है।

विशेष- खैर के हीर की लकड़ी घुनती नहीं है। और इसी वजह से खेती के औजार बनाने में इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है।

कत्था से नुकसान, दुष्प्रभाव

कत्था का प्रयोग भोजन में एक सुरक्षित मात्रा में किया जाना चाहिए। लेकिन यह जानने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है कि क्या यह दवा के रूप में उपयोग की जाने वाली बड़ी मात्रा में सुरक्षित है। कत्था के प्रयोग से कुछ लोगों में जिगर की समस्या हो सकती है। यह दुष्प्रभाव सामान्य प्रतीत नहीं होता है और केवल उन लोगों में हो सकता है जिन्हें कत्था से एक प्रकार की एलर्जी है।जहाँ कत्था के अनेको स्वस्थ्य लाभ है। वही इसका अधिक सेवन से कुछ नुकसान भी है जैसे –

पथरी का खतरा : ऐसा माना जाता है कि कत्थे का ज्यादा सेवन से पथरी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

किडनी स्टोन : कत्थे का अत्यधिक सेवन किडनी स्टोन का कारण बन सकता है। अतः इसका सेवन ज्यादा नहीं करना चाहिए।

नपुंसकता का कारण : कत्थे का अत्यधिक सेवन पुरुषों में नपुंसकता का कारण बन सकता है।

अतः जो लोग पान में कत्था ज्यादा खाते है उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए।

कत्था कैसे काम करता है?

ऐसा माना जाता है कि कत्था में ऐसे रसायन हो सकते हैं जो सूजन को कम कर सकते हैं और बैक्टीरिया को मार सकते हैं।

क्या कत्था बालों के लिए अच्छा है?

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सभी प्रकार के बालों और त्वचा के लिए उपयुक्त। … ऐतिहासिक रूप से बालों की देखभाल के उपायों में बालों की मात्रा, चमक और रंग को बढ़ाने के लिए कथा पाउडर का उपयोग किया जाता रहा है। अन्य हेयर कंडीशनर के विपरीत, यह उत्पाद एक स्थायी प्रभाव छोड़ता है। कथा पाउडर कंडीशनर के नियमित उपयोग से आपके बालों में मात्रा और मजबूती आएगी।

पान में कत्था का क्या उपयोग है?

कत्था (कत्था) पान के पत्तों से पान की तैयारी में उपयोग की जाने वाली प्रमुख सामग्रियों में से एक है, जब चूने के साथ संयोजन में, यह विशेषता लाल रंग देता है। कत्था का उपयोग कसैले, शीतलन और पाचन के रूप में भी किया जाता है।

कथा बालों को क्या रंग देती है?

एशिया भारत और चीन में पाया जाने वाला एक पर्णपाती, कांटेदार पेड़ इसका उपयोग मेंहदी में गहरे रंग जोड़ने के लिए किया जाता है। आप इसे अलग-अलग रंग के टोन देने के लिए मेंहदी पाउडर के साथ मिला सकते हैं, यह मेंहदी के लाल रंग को कम करेगा और बालों को अधिक भूरा रंग देगा

विशेष सावधानियां और चेतावनियाँ:

गर्भावस्था और स्तनपान

कत्था गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भोजन में एक सुरक्षित मात्रा में दिया जा सकता है। लेकिन अधिक बड़ी औषधीय मात्रा से बचा जाना चाहिए। और एक प्रमाणित वैध की सलाह से ही कत्थे का उपयोग करना चाहिए.

निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन)

कत्था रक्तचाप को कम कर सकता है। यह उन लोगों में रक्तचाप को बहुत कम कर सकता है,जिनका रक्तचाप पहले से ही कम हो. जो पहले से ही निम्न रक्तचाप वाले रोगी हो, उन लोगों में बेहोशी और अन्य लक्षण पैदा कर सकते हैं।

सर्जरी

क्योंकि कत्था रक्तचाप को कम कर सकता है, इसलिए यह सर्जरी के दौरान और बाद में रक्तचाप नियंत्रण में हस्तक्षेप कर सकता है। सर्जरी होने की अवस्था में कम से कम 2 सप्ताह पहले कत्था का प्रयोग बंद कर दें।

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यह भी ज्ञात नहीं है कि कत्था को सीधे त्वचा पर लगाना सुरक्षित है या नहीं।

निष्कर्ष

कत्था एक आयुर्वेदिक औषिधि है. जिसका उपयोग सदियों से पान में होता आया है. पान में भी इसका उपयोग बहुत ही सीमित मात्रा में होता है. औषधि के रूप में भी इसका उपयोग सीमित मात्रा में ही किया जाना चाहिए.

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